माननीय जी सुना था आप भोपाल आ रहे हैं और उससे पहले मैं भोपाल हो आया। भोपाल देखकर लगा कि आपका आना तो बरदान है, प्रार्थना है आप हर दो-तीन महीने में आयें, अपना घर ही समझकर आयें क्योंकि घर तो स्वर्ग होता है और फिर स्वर्ग किसे पसंद नहीं होता। आप तो घर के मुखिया हैं और मुखिया तो मुखिया ही होता है कोई पागल तो है नहीं जो अपने ही घर ना आये।
लेकिन मेरी आप से विनती है कि आप केवल बड़ी बड़ी जगह ना जाएं, हमारे छोटे से अशोकनगर भी आएं। मैं तो कहूँगा आप हर छोटे शहर में जाएं, उन गरीब खानों से शहरों को भी अपना घर बनाएँ। आप अभी तो कुछ दिनों में भोपाल आने वाले हैं और भोपाल का तो मानो भाग्य चमक गया। बचपन में सुना था कि पहले के ज़माने में बड़े बड़े किले एक एक रात में बन जाते थे और आज आपके आने से तो रातों रात किला भले ना बना लेकिन सड़क जरूर डल गई। शायद माननीय जी को अपनी सवारी गाड़ी में चाय पीने का शौक होगा और चिकनी सड़क पर धचके लगते नहीं। हम गरीबों को तो सड़क पर चलने में और सफ़र करने में मौन रहना ही मुनासिब है, पता नहीं हम कुछ बोले और न जाने कब सड़क पर गड्डा आया और पता चला कि चर्चा की जगह अपनी जीभ चबा बैठे। इसलिये माननीय जी आप हमारे यहाँ भी आइये और हर साल आइये क्योंकि आज कल चप्पल से कम एक्सपायरी डेट तो सडकों की होती है। आप आते रहेंगे और सड़क चिकनी रहेगी और हम चाय भले ना पियें लेकिन चर्चा तो कर ही लेंगे। आपके भोपाल आने से लोगों का एक तबका बड़ा नाराज़ है क्योंकि जिन लोगों ने बड़ी मेहनत से सरकारी दीवारों पर लाल-लाल थूक-रंग से जो सुंदर आर्ट्स बनाये थे,उन्हें वॉल-पेंटिंग के नाम पर वेवजह पोत दिया गया। वो नाराज़ इसलिए भी नहीं कि दीवारों को पोता लेकिन वो दीवारें तो उनके अप्रत्यक्ष कर की प्रत्यक्ष निशानी थी।
माननीय जी शायद आप में कोई अलौकिक शक्ति है क्योंकि आपके आने मात्र की खबर से सब अधिकारियों में जोश आ जाता है, जो काम सालों में नहीं होता वो घंटों में हो जाता है। माननीय जी आप महान हैं क्योंकि आपके आने के डर से तो सड़क किनारे पेड़ पौधे अपने आप उग आते हैं और दूसरी जगह कम हो जाते हैं। कचरे का कोई नाम नहीं होता है मानो कचरा शब्द ही इस शहर ने ना सुना हो और पल भर के लिये मुझे लगा कि ये भोपाल नहीं है, शायद मेरा सपना है और फिर वो सपना भी टूट जाता है।
माननीय जी आप मेरे शहर भी आइये, आपका मन हो तो ना भी आइये लेकिन एक बार घोषणा कर दें कि आप मेरे अशोकनगर आयेंगे और फिर चाहे कुछ दिन बार इंकार कर दें। उससे आपका तो कुछ नहीं होगा लेकिन हमारे कुछ अच्छे दिन आयेंगे। हम भले ही कार में बैठकर चाय ना पियें लेकिन माननीय जी हमारे हाथ-पैर दर्द से बच जायेंगे।
तो माननीय जी आप हमारे शहर, अरे मेरा मतलब अपने घर घूमने कब आयेंगे।
धन्यवाद।